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व॒क्ष्यन्ती॒वेदा ग॑नीगन्ति॒ कर्णं॑ प्रि॒यꣳ सखा॑यं परिषस्वजा॒ना। योषे॑व शिङ्क्ते॒ वित॒ताधि॒ धन्व॒ञ्ज्या इ॒यꣳ सम॑ने पा॒रय॑न्ती ॥४० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

व॒क्ष्यन्ती॒वेति॑ व॒क्ष्यन्ती॑ऽइव। इत्। आ॒ग॒नी॒गन्ति॒। कर्ण॑म्। प्रि॒यम्। सखा॑यम्। प॒रि॒ष॒स्व॒जा॒ना। प॒रि॒ष॒स्व॒जा॒नेति॑ परिऽसस्वजा॒ना। योषे॒वेति॒ योषा॑ऽइव। शि॒ङ्क्ते॒। वित॒तेति॒ विऽत॑ता। अधि॑। धन्व॑न्। ज्या। इ॒यम्। सम॑ने। पा॒रय॑न्ती ॥४० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:29» मन्त्र:40


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वीर पुरुषो ! जो (इयम्) यह (वितता) विस्तारयुक्त (धन्वन्) धनुष में (अधि) ऊपर लगी (ज्या) प्रत्यञ्चा ताँत (वक्ष्यन्तीव) कहने को उद्यत हुई विदुषी स्त्री के तुल्य (इत्) ही (आगनीगन्ति) शीघ्र बोध को प्राप्त कराती हुई जैसे (कर्णम्) जिस की स्तुति सुनी जाती (प्रियम्) प्यारे (सखायम्) मित्र के तुल्य वर्त्तमान पति को (परिषस्वजाना) सब ओर से सङ्ग करती हुई (योषेव) स्त्री बोलती वैसे (शिङ्क्ते) शब्द करती है, (समने) संग्राम में (पारयन्ती) विजय को प्राप्त कराती हुई वर्त्तमान है, उसके बनाने बाँधने और चलाने को जानो ॥४० ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में दो उपमालङ्कार हैं। जो मनुष्य धनुष् की प्रत्यञ्चा आदि शस्त्र-अस्त्रों की रचना, सम्बन्ध और चलाना आदि क्रियाओं को जाने तो उपदेश करने और माता के तुल्य सुख देनेवाली पत्नी और विजय सुख को प्राप्त हों ॥४० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(वक्ष्यन्तीव) यथा वदिष्यन्ती विदुषी स्त्री तथा (इत्) एव (आगनीगन्ति) भृशं बोधं प्रापयन्ति (कर्णम्) श्रुतस्तुतिम् (प्रियम्) कमनीयम् (सखायम्) सुहृद्वद्वर्त्तमानम् (परिषस्वजाना) परितः सर्वतः सङ्गं कुर्वाणा (योषेव) स्त्री (शिङ्क्ते) शब्दयति (वितता) विस्तृता (अधि) उपरि (धन्वन्) धन्वनि (ज्या) प्रत्यञ्चा (इयम्) (समने) समे (पारयन्ती) विजयं प्रापयन्ती ॥४० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वीराः ! येयं वितता धन्वन्नधि ज्या वक्ष्यन्तीवेदागनीगन्ति कर्णं प्रियं सखायं पतिं परिषस्वजाना योषेव शिङ्क्ते समने पारयन्ती वर्त्तते तान्निर्मातुं बद्धुं चालयितुं च विजानीत ॥४० ॥
भावार्थभाषाः - अत्र द्व्युपमालङ्कारौ। यदि मनुष्या धनुर्ज्यादिशस्त्रास्त्ररचनसम्बन्धचालनक्रिया विज्ञायेरन्, तर्हीमामुपदेशिकां मातरमिव सुखप्रदां पत्नीं विजयसुखं च प्राप्नुयुः ॥४० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात दोन उपमालंकार आहेत. जी माणसे धनुष्याची प्रत्यंचा इत्यादी अस्र शस्त्रांची रचना, संबंध व ती चालविणे इत्यादी क्रिया जाणतात त्यांना उपदेश करणारी व मातेप्रमाणे सुख देणारी पत्नी प्राप्त होते व त्याचा सर्वत्र विजय होतो.